स्कूल कॉलेज
पापा लाए वर्दी, विद्यालय से क्यों उनको इतनी हमदर्दी।
मैं जाऊं या ना जाऊं, चलती नहीं मेरी मर्जी।
विद्यालय जाना नहीं मेरी सिरदर्दी, दोस्त मिले वहां असली, करें मेरी हमदर्दी।
टीचर रहे खुश मैं होमवर्क करूं खूब।
आगे बढ़ा तो रोया क्योंकि मित्रों के ग्रुप को खोया।
दस का आंकड़ा मुझे नहीं भाता, मित्रों को साइंस कॉमर्स में पहुंचाता, मुझे आर्ट था माता,
मैं मित्रों से शर्माता।
फिर नई शुरुआत नए मित्र आए पास।
फिर बाहरवीं में लड़ा, क्योंकि कॉलेज सामने था खड़ा।
बाहरवीं जीता मन दोबारा फीका, नई शुरुआत नए मित्र पास। बचपन गया युवा हुआ किताबों ने फिर भी पीछा किया।
यह क्या हुआ बुढ़ापे तक विद्यालय कॉलेज दिल से जुड़ा।