सौंदर्यबोध
14. सौंदर्यबोध
भेज रहा हॅू फूल तुम्हारे जूड़े जूड़े में लग जाने को,
या इसकी सुगन्ध से तेरे जीवन को महकाने को ।
बन न सका मैं मीत तुम्हारा ना इसका अफसोस मुझे,
शायद इस गुलाब की हसरत थी तुम पर मिट जाने को ।।
मिलन तुम्हारा मुझसे होगा ना ये मैंने सोचा था,
मिलन तुम्हारा किससे होगा ना ही ये भी सोचा था।
फूलों से आच्छादित हो पथ पड़ें तुम्हारे पग जिस पर,
और शूल मुझको मिल जायें ऐसा मैनें सोचा था ।।
ईश्वर की सुन्दरतम रचना और सृष्टि का हो उपहार,
मन्द मलय का तन को छूना ऐसा है तेरा व्यवहार ।
पलक उठे तो फूल खिल उठें पलक गिरे तो मुरझायें,
इन्द्रधनुष मुस्कान तुम्हारी अलकें लगतीं चन्दनहार ।।
तुम्हें बनाकर विधना ने भी जग पर ये उपकार किया,
सुन्दरता की परिभाषा को गढ़ने का आधार दिया ।
किन्तु बनाकर तुझे विधाता स्वयं पड़े हैं इस भ्रम में,
उसने रखा रूप तेरा या तूने उसका धार लिया ।।
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प्रकाश चंद्र , लखनऊ
IRPS (Retd)