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6 Apr 2020 · 1 min read

सोचो तो सबकुछ है मौज़ूद और कुछ भी है नहीं

सोचो तो सबकुछ है मौज़ूद
और कुछ भी है नहीं…
ज़ीने वाले तमाम
तमाम मरने वाले
पेड़ पौधे और भी प्राणी..
नश्चर, निश्चल, निषभाव
वेग से चलती धारें मद्धम मद्धम..
सोचो तो सबकुछ भी है मौज़ूद
और कुछ भी है नहीं…
ईश्वर,अल्लाल और मसीहा
सब चौपट है, सब है ही नहीं
और ये सभी हैं भी..
चलो पदचिन्हों पर..मगर
वे चिह्न, मात्र चिह्न ही तो हैं
भीड़ है, भगदड़ है, शांति नहीं
और है भी शांति..
सोचो तो सबकुछ भी है मौज़ूद
और कुछ भी है नहीं…
प्रकृति, पहाड़ और बहती नदियाँ
ठहरा हुआ सागर, उड़ती पंक्षियाँ
ऊष्म का ताप, शीत की लहरें
टेढ़े रस्ते, सीधे मानव, जीता जागता प्राण
हौले-से-उठता धुंआ, मौन सा भँवर
सोचो तो सबकुछ भी है मौज़ूद
और कुछ भी है नहीं…
हिमालय का वृहम दृश्य, स्पर्श करते गगनचुम्भी
हरियाली घटा, सावन-भादो का स्पंदन्
जीते जागते मनुज, कथित ईर्ष्या भी कोमलता भी
मुरझाए हुवे मंजरी, मीठे फलों के पेड़
खट्टे आम, मीठी-मीठी बातें..
सोचो तो सबकुछ भी है मौज़ूद
और कुछ भी है नहीं..
दर्द है और दवा भी, सुख भी दुःख भी
मौत है पल-पल, जीवन टीस है बनी
पानी है, झरने हैं, सरसती-टपकटी बूंदे
बेजुबान प्राणी, बदज़ुबान मानुष भी
अच्छा है, बुरा है, भला है, ये भी, वो भी
बोझ भी, विराज भी, नव-विध्न, नवाचार भी
सोचो तो सबकुछ भी है मौज़ूद
और कुछ भी है नहीं….

✍️ Brijpal Singh

Language: Hindi
1 Like · 235 Views
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