सेवक (हास्य कविता )
लड़की देखने
गया लड़का
मार्डन लड़की
देख तडका
सोचा खुल
गयी किस्मत
सुन्दर इतनी
प्यारी लड़की
हो गया लट्टू
बस लगायी
एक रट्टू
करूँगा शादी
अब इससे
पूछा लड़की ने
बस एक बात
“रहोगे कैसे मेरे साथ?”
बोला लड़का झट से
“रहूँगा बस सेवक
बन कर आपका
कहोगी दिन को रात
तो रात कहूँगा ”
कहा लड़की ने
अकड़
” हो गयी
वो बात पुरानी
अब बदल गये हैं
मायने सेवक के
कहूँगी मैं जो
मनोगे सब वह
दो लिख कर इतना”
आया अब समझ
मतलब सेवक का
चौका चक्की
बरतन भाड़े
उसकी
सेवा सुश्रुषा
की है पूरी
जिम्मेदारी
न है कोई
रिश्तेदारी
बस है सेवक की
हिस्सेदारी
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल