सेमल के वृक्ष…!
सेमल के वृक्ष…!
~~°~~°~~°
वो सेमल के वृक्ष पुराने …!
अब नहीं दिखते…
चौड़े सड़क से निकलने वाली ,
पगडंडी के मुहाने पर खड़ा ।
विशालकाय वो वृक्ष अब नहीं दिखते…
शहरीकरण के अंधे दौर में ,
सारे पुराने वृक्ष कट गए लगते ।
कभी कच्ची पगडंडी के ,
उद्गम की निशानी थे जो ।
अब कहाँ दिखते…
पूस माघ के मौसम ,
गद्देदार रक्तिम पुष्पों की पंखुड़ियां ,
सड़क पर बिखरे पड़े होते ,
लाल चादर से लगते ।
अब नहीं दिखते… ।
चैत वैशाख सेमल की फलियां पकती ,
तो उड़ते श्वेत रेशमी फाहें ,
चतुर्दिक व्योम तले ,
धवल नभ जलधर समान ।
अब कहाँ दिखते…
इसके कंटकयुक्त मोटे तने से ,
पीठ रगड़ खुजली मिटाते चतुष्पद जंतु ,
जो आते इसके छांव तले फिर ,
आंखमुंद थोड़ी देर आराम करते ।
अब नहीं दिखते…
वृक्ष के मोटे तने बीच कोटर में छिपे ,
कठखोदी के बच्चे कहाँ लापता हो गए ।
तने पर अपने नुकीले चोंच से ,
कलंजी फैलाये ठक ठक करते कठखोदी भी ,
अब कहाँ दिखते… ।
ऊचें वृक्ष की फुनगियों पर ,
गिद्धों की टोलियाँ विराजमान रहती ।
अपने दूरदर्शी चक्षुओं से ,
जानवरों के मृत शरीर को ,
एकटक खोजती दिखती जो ,
अब नहीं दिखते… ।
होंगे और भी कई सेमल के वृक्ष ,
पर जिसे मैंने देखा था बचपन में ।
वे अब नहीं दिखते…
पर उन सेमल के वृक्ष से जुड़ी यादें ,
अभी तक जेहन से नहीं मिटते…
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )