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18 Mar 2024 · 1 min read

ज़िंदगानी

रिश्ते थे जो, वो टूटते चले गए ,
दोस्तों के साथ भी छूटते चले गए ,
वक्त के साथ एहसास भी बदलते गए ,
जब -तब हादसे , ज़ीस्त को ग़म में डुबोते गए ,
आग़ाज़ -ए – ख़ुशी से ग़म के बादल छँटते गए ,
कुछ फ़रेब खाते ,कुछ संभलते, सफ़र में बढ़ते गए ,
आरज़ू बहुत थी , जुस्तजू भी की, सब्र का दामन थाम,
दिल को मनाते गए ,
माज़ी को भुला, मुस्तक़बिल की फ़िक्र छोड़, हालातों से समझौता करते रहे ,
औरों के लिए जीना छोड़,
ख़ुद के लिए जीते- मरते रहे।

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