सूरज पर चढ़ रही जवानी
ओढ़े हुए आग की चादर, करने आया है मनमानी
तपा रहा जमकर धरती को, सूरज पर चढ़ रही जवानी
यहाँ बहुत दुश्मन पानी के, सुखा रहे हैं धीरे धीरे
मर जाना, मरने मत देना, तुम अपनी आँखों का पानी
एक दुसरे की कमियां तो, खूब निकाली गिन गिन हमने
सीधी सच्ची बात हुई जब, उसने मानी, मैंने मानी
दिल में मत अंगार छुपाओ, बारूदों से दूर रहो
थोड़ा बहुत ठीक है झगड़ा, बंद न करिए हुक्का-पानी
दिन की बातें भूल-भाल कर, एक नींद गहरी सी ले लो
रोज नई आशाएँ लेकर, आती है हर भोर सुहानी
कितना बड़ा हृदय है उसका, समझ न पाया अब तक कोई
माफ़ सदा ही कर देती माँ, कर लो कितनी भी नादानी