*सुविचरण*
डॉ अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त
सुविचरण
गुलगप्पा मुख राखिए
पानी भरा जो होय ।
बूंदी आलू से भी भरा
तन मन को सुख देय ।।
तेरा मेरा क्या करे
सब है सब के पास
उत्तम मानव हैं वही
जिनु जग कल्याणक खास
रे भैया जग कल्याणक खास
मानस मनन करते रहो
मन पे अंकुश राख
मन जो विचलित हो कभी
धीर धारियों आप
धीरज धर्म का मूल है
अरु धर्म, ज्ञान सम तंत्र
जो-जो इस पथ पे चलें
उन सबे मानिए मंत्र
तृष्णा तीरथ ज्ञान की
जस हिय में अग्नि राम की
राम नाम नॉव से
भव सागर की यात्रा
होती बड़ी आराम की
मानस मनन करते रहो
मन पे अंकुश राख
मन जो विचलित हो कभी
धीर धारियों आप