#सुर्खियों_से_परे-
#सुर्खियों_से_परे-
■ मैदानी पुतले पर भारी मोहल्ले का रावण।
★ विजया-दशमी पर होगा दहन।
श्योपुर।
आपने बड़े-बड़े मैदानों में जलते रावण के तमाम पुतले देखे होंगे। एक से बढ़ कर एक। ऊंचे से ऊंचे, मंहगे से मंहगे। जो हर साल दशहरे से पहले बना कर मैदान में खड़े किए जाते हैं। यह अलग बात है कि इनमें से अधिकतर आकर्षण से कोसों दूर होते हैं। जिनका मख़ौल भी मीन-मेख निकालने वाले जम कर उड़ाते हैं। इनके विपरीत ऐसे पुतलों की भी कमी नहीं, जो गली-मोहल्लों में बनते हैं और मैदानी पुतले को पीछे छोड़ देते हैं। मामूली लागत व भरपूर आकर्षण के मामले में। यह और बात है कि वो सुर्खियों में आने से रह जाते हैं। आज हम आपको ऐसा ही एक पुतला दिखाना चाहते हैं, जिसकी तारीफ़ आप न चाह कर भी करने पर मजबूर हो जाएंगे।
तस्वीर में दिख रहे छोटे-बड़े चेहरे, कलात्मक मुकुट व दमदार ढांचा रावण के छोटे पुतले का है। जिसका निर्माण सचेतन भटनागर द्वारा किया जा रहा है। सचेतन नगर-पालिका में कम्प्यूटर ऑपरेटर के रूप में सेवारत हैं। जो हर साल अपने बेटे हैप्पी व साथी बच्चों की मांग पर बनाते हैं। आतिशबाज़ी सहित पुतले का निर्माण अधिकतम 3 से 4 हज़ार रुपए में हो जाता है। जिसे जलते देखने के लिए पूरा मोहल्ला चाव से जुटता है।
नगर के वार्ड-03 में आने वाले पंडित पाड़ा क्षेत्र के गीता भवन तिराहे पर जलने वाले पुतले का निर्माण लगभग एक सप्ताह में होता है। क़रीब एक दशक से पुतला बनाने वाले सचेतन से पहले यह काम उनके बड़े भाई आनंद भटनागर करते थे। जिन्होंने मोहल्ले के बच्चों की मांग पर डेढ़ दशक तक पुतले बनाए। मज़े की बात यह है कि इस रावण के लिए बच्चे परिवार के सभी सदस्यों सहित कुछ ख़ास पड़ोसियों से ही चंदा वसूलते हैं। जिसमें उतनी ही राशि सचेतन भटनागर को जेब से मिलानी पड़ती है। ताकि रावण-दहन पूरे धूम-धड़ाके से हो और मोहल्ला राम जी के जयकारों से गूंज सके। मेला मैदान का रावण जलने के बाद।
आख़िर में कुछ खुलासे और करता चलूं। पहला यह कि उक्त दोनों भाइयों ने इस कला को किसी से सीखा नहीं है। दूसरा यह कि दोनों क्रमशः गणित और विज्ञान के छात्र व शिक्षक रहे हैं। तीसरी और बड़ी बात यह कि दोनों मेरे सगे छोटे भाई हैं। बीते 35 साल से दुनिया के बारे में लिखता आया हूँ। आज लगा कि घर वालों की कला व मेहनत को क्यों न सराहा जाए? दूसरे क्या सराहेंगे, जब अपने ही न सराह सकें तो। बहरहाल, इंतज़ार है, सारे अंगों के जुड़ने व सज्जा पूरी होने का। जिनमें पोशाक, शस्त्र व अन्य आभूषण का काम अभी बाक़ी हैं।
👌👌👌👌👌👌👌👌👌
-सम्पादक-
●न्यूज़&व्यूज़●
(मध्य-प्रदेश)