सुरूर छाया था मय का।
सुरूर छाया था मय का ,
कूबूल है मुझको,
मेरे हाथों ने ,
तेरी हथेली को मैंने जब पाया था,
अपने अहसास से भीगे हुए ,
हाथों से जब,
मैंने बाहों को तेरे सहलाया था,
और रखे थे मैंने लब हथेलियों पर तेरे,
मेरे अरमां के जवां होने पर,
तुमने बड़ी शालीनता से अपना चेहरा,
मेरे चेहरे से तनिक दूर हटाया था,
सुरूर ने तो बस ,
कुछ बंद दिल के खोले थे,
जहां बरसो से तेरा नशा छुपाया था,
सुरूर ने जरा गुस्ताख़ बनाया था मुझको,
बाकी सच कहता हूं,
सब दिल से मेरे आया था,
कुमारकलहँस