सुमित्र (रसाल) छंद……
मरीचि दिनकर की,भरती है जग में उमंग।
विभोर है प्रकृति,चहुंदिश उठ रही तरंग।।
वितान पीत वर्ण,जिसका आदि और न अंत।
बिखेर कर सुंगध,झूमता आ गया बसंत।।
रंजना माथुर
अजमेर राजस्थान
मेरी स्वरचित व मौलिक रचना
©
मरीचि दिनकर की,भरती है जग में उमंग।
विभोर है प्रकृति,चहुंदिश उठ रही तरंग।।
वितान पीत वर्ण,जिसका आदि और न अंत।
बिखेर कर सुंगध,झूमता आ गया बसंत।।
रंजना माथुर
अजमेर राजस्थान
मेरी स्वरचित व मौलिक रचना
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