सुन लो
दिग्पाल छंद
२२१ २१२२/ २२१ २१२२
सुन लो प्रभू हमारे,हम दास हैं तुम्हारे।
किरपा सदा रही है ,सब काज ही संवारे।।
तूने किया सतत ही, इस दास का भला है,
जब जब मिली न मंजिल, तूने दिये सहारे।
आयी कभी मुसीबत,जीवन बना पहेली,
डूबी कभी जो कश्ती, पतवार बन उभारे।
जब-जब हुआ अंधेरा,काली घटाएं छायीं,
जीवन में भर दिये हैं, तूने सकल उजारे।