सुन री सखि
गीत
सुन मेरी सखी रात होने लगी
प्रेम की मौज होठों खिलने लगी
रात सूनी इच्छा सी जताने लगी
देह ज्यो सँजना मे समाने लगी
नैन हो बाबले चैन खोने लगे
आग सी सीसकी मे सूखाने लगी
यामिनी भाव में जाग सोने लगी
साँस में प्रीत की सी जमाने लगी
रात की रागिनी खो गुंजाने लगी
मोहिनी सी मधु मधूप की होने लगी
Dr. Madhu Trivedi