सुना है हमने दुनिया एक मेला है
सुना है हमने दुनिया एक मेला है
तो हर आदमी दिखता क्यों अकेला है
भला कैसे ये दुनिया एक मेला है–सुना है हमने
लोग भीड़ में भी अकेले नजर आते हैं
तो फिर क्यों ये महफिलें सजाते हैं
हर कदम पर झमेला ही झमेला है-‘सुना है हमने
हर तरफ प्यार मोहब्बत का फ़साना है
फिर भी हर आदमी क्यों दिवाना है
सभी ने खुद को आग में धकेला है-सुना है हमने
यह तेरा,यह मेरा,यह उसका हमसफर है
फिर भी अकेला ही क्यों रहगुजर है
न साथ गुरु है न ही साथ चेला है–सुना है हमने
मिल बैठकर यूँ तो सभी ठहाके लगाते है
मगर चेहरे यूँ उड़े-उड़े नजर आते हैं
अपना ही अपनो से कर रहा खेला है–सुना है हमने
‘V9द’ खुदा ने दुनिया ये अजब बनाई है
लगे हैं मेले फिर जाने कैसी तन्हाई है
है अजब जहां मानव भी अलबेला है–सुना है हमने
स्वरचित
विनोद चौहान