{{ सुनाने से न रुके }}
रोका था मैंने अपने दिल को, तुमपर आने से रुके
कम्बख्त न वो रुका और तुम जाने से न रुके,,
गीला तकिया सारी रात शिकायत करता रहा मुझसे
समझाया बहुत तब भी ये आँसू आने से न रुके,,
कर रहे थे हम उनसे शिकवा न मिलने का
वो सितमगर मेरी हर बात पे, मुस्कुराने से न रुके,,
हिजाब में छुपा रखा था अपने इश्क़ को मैंने
बेशर्म ऐसे थे वो, के सारे बाजार गले लगाने से न रुके,,
हम उनकी चाहत में फ़ना तक हो गए
हर ज़र्रे में वो मोहब्बत को तलाशने से न रुके,,
हर ख्वाहिशों को दफन कर बनाया था आशिया अपना
कातिल इतना बेदर्द था, के वो कत्ल करने से न रुके,,
आज फ़ुर्सत से वो बैठे थे मेरा दर्द बाटने
रोते रहे वो सुनते हुए और, हम भी सुनने से न रुके,,