सुदामा कृष्ण के द्वार
“सुदामा “कृष्ण” के द्वार”
रोज-रोज खूब चल रही , जब पत्नी संग रार
गरीब सुदामा पहुंच गए ,आज “कृष्ण” के द्वार
द्वारपाल ने रोक लिया , देख सुदामा हाल
फटे वस्त्र धूल सहित , बिखरे पड़े थे बाल
मनुहार करें सुदामा , विनती करें बारंबार
एक बार मिलवाओ मुझे , होगा बहुत आभार
द्वारपाल माने नहीं , सुदामा की कोई बात
द्वार पर समझे नहीं , कोई उनके जज्बात
हंसी ठिठोली कर रहे , सब सुदामा की आज
दांव पर थी लग गई , आज तो उनकी लाज
आखिर में है मान गया , द्वारपाल उनकी बात
पहुँचाई खबर “कृष्ण” तक , खड़े सुदामा भरी रात
मित्र सुदामा की सुन खबर , “कृष्ण जी” आपा खोए
भाग खड़े नंगे पैर ही , ताकि जल्द ही दर्शन होये
द्वारपाल घबरा गया , अपनी करनी पर आज
सुदामा तो “कृष्ण” मित्र है , शिकायत करेंगे आज
सुदामा जी अति सरल थे , भूल गए सब बात
मित्र “कृष्ण” के संग रहे , फिर वह कई दिन और कई रात ।
✍विवेक आहूजा
बिलारी , जिला मुरादाबाद
@9410416986