सुंदर रानी
21/03/2023
दिन मंगलवार
कहानी–
शीर्षक –सुंदर रानी
भोलूराम बहुत गरीब लेकिन ईमानदार व्यक्ति था। परिवार में पत्नी के अलावा दो बेटे और एक प्यारी सी बिटिया भी थी। भोलूराम का पुश्तैनी काम था कठपुतली के खेल दिखाना जिसमें अब उसका परिवार सहयोग करता था।भोलूराम ने अपने बच्चों को सिखा दिया था कि परदे के पीछे से किस तरह आवाज निकाल कर नाटक या खेल को प्रभावी बनाते हैं।
एक समय था जब भोलूराम के बापदादाओं ने कठपुतली के खेल में ही अपनी इज्जत और सम्मान बनाया था।
पर बदलते वक्त के साथ अब कठपुतलियों के खेल को कोई पूछता भी नहीं था। भोलू राम के बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ते थे। जहीन होने के कारण अव्वल आते और वजीफा मिलने से पढाई ठीक ठाक चल रही थी पर जीवन की और भी मूलभूत आवश्यकताओं में रोटी सबसे बड़ी जरुरत थी।मोबाइल ,टेलीविजन व अन्य महँगे मनोरंजन के साधनों के कारण कठपुतली का खेल कोई नहीं देखता था।कभी कभीर सौ पचास रुपये मिल जाते थे पर वो भी पाँच लोगों के पेट की आग बुझाने में नाकाम हो जाते थे।
एक दिन भोलूराम अपनी पत्नी के साथ चिंतित हो कुछ और छोटा मोटा धंधा करने के बारे में कह रहा था। सुंदर और रानी टूटी-फूटी लकड़ी की अलमारी में बैठे सब सुन रहे थे।
जैसे ही भोलूराम ने दोनों कठपुतलियों को बेच कर पैसे जुगाड़ने की बात आँसुओं के साथ कही,उसकी पत्नी का मौन रूदन शुरु हो गया।सुंदर रानी का कलेजा भी काँप गया। जब भोलूराम पैदा भी न हुआ था ,उसके पहले से वह इस घर में सबके जीवन का अंग बने हुये थे।
“सुंदर, …अगर मालिक ने हमें बेच दिया तो…?”
“तो….!!पता नहीं हमारा क्या होगा?क्या न लेगा,क्या उपयोग करेगा हमारा..।”सुंदर भी चिंतित था
“पर हम भी तो अपने मालिक की सेवाओं का मूल्य नहीं चुका पा रहे।ऊपर से हमारा रख-रखाब भी ये लोग अपने पुरखों की तरह जीजान से करते हैं।”रानी दुखी थी
“सुन रानी,क्यों न हम दोनों कहीं दूर भाग जाएँ। जिससे इनकी, हमारी फिकर तो कम होगी!क्या कहती हो?”
“पागल है क्या?अहसानफरामोश होने लगा है तू भी इंसानों की तरह?देख इनकी माली हालत ठीक नहीं।अगर हम भी चले गये तो ….ये तो हमें किसी और को देकर कुछ धन चाहते हैं..इनकी भी तो मजबूरी है।”रानी का गरा रूंध गया।
“तो तू ही बता क्या करूँ?अपने मालिक की हालत तो हमसे भी न देखी जा रही।”सुंदर ने आँसू पौंछते हुये प्रश्नवाचक निगाहों से देखा।
“तू तैयार है मेरी बात मानने को?”रानी ने कुछ क्षण सोचने के बाद पूछा
“कौन सी बात…?”
“हम “सुसाइड”कर लें,तो मालिक की मदद हो जाएगी।”रानी ने रहस्य भरी आवाज में कहा
सुंदर सिर खुजलाते हुये कुछ पल रानी को देखता रहा फिर एकदम से उछल कर बोला,”लोग यूँ हीं नहीं कहते कि समझदार बीबी मुसीबत से बाहर निकाल ही लेती है।चलो..मैं तैयार हूँ।”
रानी ने सुंदर का हाथ थामा और ऊपर वाली अलमारी से छलांग लगा दी। लाख मजबूत थी लकड़ी।लेकिन वर्षों पुरानी होने से कमजोर हो गयी थी।नीचे आते-आते टूटे दरवाजे से टकरा कर हाथ पाँव उखड़ गये।पर सुंदर और रानी के चेहरे पर मुस्कान थी।
अलमारी से कुछ गिरने की आवाज सुन भोलू और उसकी पत्नी हड़बड़ा कर उठे।देखा तो दोनों कठपुतलियाँ जमीन पर टूटी पड़ीं थी। उन्हें देख पतिपत्नी सीने से लगा यूँ बिलख उठे मानों अपने बच्चे ही खो दिये हों।
“शायद इन कठपुतलियों को अहसास हो गया था कि हम इन्हें दूर करने वाले हैं..इसलिए..।”भोलू बुक्का फाड़ कर चीत्कार कर उठा।
स्वरचित ,मौलिक
मनोरमा जैन पाखी ‘मिहिरा’