सुंदर नाता
अंतर्मन का वाह्य मन से
बड़ा ही सुंदर नाता है
जब भी कहता है
कुछ वाह्य मन
अंतर्मन तुरंत पूरा
करने लग जाता है
वाह्य मन मेरी डायरी,
चश्मा और कलम
मेरे सिरहाने रखता है
जो भी चलता है अंतर्मन में
उसे तुरंत लिपिबद्ध करता है
अंतर्मन का सुख-दुख
वाह्य मन तुरंत व्यक्त करता है
और वाह्य मन का दर्द
अंतर्मन तक पहुंचता है।
मज़ा तो तब है जब
दोनों एक हो जाते है
और मुझे इसी धरती पर
स्वर्ग की अनुभूति कराते हैं।