सीख ले
नेवले से दिल लगाना सीख ले ।
सर्प को अपना बनाना सीख ले ।
जानना है जिंदगी का अर्थ तो
आँसुओं को गुनगुनाना सीख ले ।
कौन पढ़ता है प्रणय की चिट्ठियाँ
चिट्ठियाँ गंगा बहाना सीख ले ।
छाँह की चिर प्यास तुझमें है अगर
मारकर खुदको उगाना सीख ले ।
यह धरा क्या व्योम चूमेगा कदम
हौसलों के खग उड़ाना सीख ले ।
लाश होकर रह न जाए सच कहीं
झूठ को टोपी उढ़ाना सीख ले ।
चाहता है साधना जो विश्व को
फूल में खंजर छुपाना सीख ले ।
०००
अशोक दीप
जयपुर