सीख दोहे
नयन बंद कर तू चले
जात कंही टकराई
एक छोटा सा टूकडा
देत हमे समझाई।।।।।।।१
जग सारा यू बाबरा
क्यू बाधे रीति भांति
पिसत पिसत कल पाट में
बीत जात दिन रात।।।।।।।२
पुष्प सुनाये अपनी गाथा
रूप मिले कितना सुहाता
मति गुमान करो मेरे भ्राता
न तो झाड देत मौर दाता।।।।।।।३
मिटटी कहत कुम्हार से
वर्थ करत परिश्रम मोहपे
समय आवत तेरा ही
दावि देही हम तोह का।।।।।।४