सीख गए हैं
उनवान( शीर्षक )- ” सीख गए हैं ” 】
उदास रहकर मुस्कुराना सीख गए हैं ।
ग़मों को अपने छुपाना सीख गए हैं ।।
मुहब्बत में निभायी थी …वफ़ा जिनसे ।
उनकी बेवफ़ाई भूलाना सीख गए हैं ।।
आदत हो गई है चोट खाने की हमको ।
ज़ख़्म अपने दिखाना ….सीख गए हैं ।।
बार बार रूठने की… ज़िद है जिनको ।
अब उनको मनाना …….सीख गए हैं ।।
वो कहते थे….. एक दूजे के हैं हम ।
हक़ हम भी जताना ……सीख गए हैं ।।
ख़ूब रोये थे हिज्र में तड़पकर “काज़ी “।
मगर जग को हंसाना…. सीख गए हैं ।।
©डॉक्टर वासिफ़ काज़ी
©काज़ीकीक़लम