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9 Dec 2017 · 1 min read

सिर्फ हादसा?

हँसती खेलती एक ज़िन्दगी,
शाम ढलते ऑफिस से निकलकर,
है दिल्ली की सड़क पर …,
ओवरटाइम से…
सुनहरे सपने को जोड़ती,
घरपर मोबाइल से कहेती,
बस, मम्मी अभी आयी…
आज टेक्षीयाँ भी भरी हुई,
और…खाली है उसे रुकना नहीं,
अपनी फिक्र में दौड़ता शहर
चकाचौंध रौशनी…!!
तेजी से एक शैतानी कार थोड़ी रुकी,
…और खींचकर उड़ा ले गयी
कँवारी हसरतें..मासूमियत…
वो जीने की तमन्ना,
पीछे सड़क पर पड़ा मोबाइल,पर्स
कराहता रहा…
चीखे हॉर्न से टकराकर
बिखरती रही…
सड़क के मोड़ पर ज़िन्दगी को
ध्वस्त करके फेंक दिया…
थोड़ी ज़ुकी आँखों की भिड़ ने
एक ज़िंदा लाश को
घर पहूँचाया…
रिपोर्ट, केस, सुनवाई, सजा,
सालो बाद…गली के मोड़पर
किसी ने रूककर…
आप तो वही नां..?
…हाँ…में वही
….एक हादसा…
मुझे मेरा नाम नहीं पता…!

-मनीषा जोबन देसाई

Language: Hindi
1 Like · 437 Views
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