सिर्फ लिखती नही कविता,कलम को कागज़ पर चलाने के लिए //
अर्जुन की तरह सोच मैं डूबी थी,
सामने अपने है,तरकश से तीर निकालूं कैसे चलाने के लिए//
युद्ध तो लड़ना ही होगा,
श्रीकृष्ण बनकर तुम ही आये थे समझाने के लिए //
तकलीफ हर हाल मैं है,
तीर भी मेरा ,और सामने खून भी अपना ही है बहाने के लिए //
क्या दुश्मनी के चलते हुआ ये,मेरे भाई !
मैंने तो सुना है,महाभारत थी अपनों को अपनी राह से हटाने के लिए //
किसने सिखाया हमको ये,
हमें तो मंदिर भेजा गया हमेशा सिर्फ रामायण सुनने और सुनाने के लिए //
पलट कर देखना ज़रा सा,
हर बात याद आएगी ,जरुरत ही नही तुम्हे कुछ याद दिलाने के लिए //
हम सब खाली हाथ रह जायेंगे,
बस यादें रह जाएँगी आखिर मैं भुलाने के लिए //
तुमको मुबारक हो मिटटी के ये मकां,
मुझको तो बस आने देना कभी-2 बचपन की यादों को ताज़ा बनाने के लिए//
निकाल कर रखती हूँ दिल,
सिर्फ लिखती नही कविता,कलम को कागज़ पर चलाने के लिए //