सिपाही
वीर भगत सा बनूं सिपाही,सूरज सा अंगार बनूं ।
रण में झूमें वीर सिपाही,उनका में श्रृंगार बनूं।।
छाती चीरूंगा दुश्मन की,मै वीरो की ढाल बनूं ।
मां से जाकर कहो हवाएं,मै तेरा फिर लाल बनूं।।
लाल रक्त से नदी बहा दूं,मै भारत का लाल बनूं ।
चंडी बनकर खेलूं रण में,मै कंकाली ज्वाल बनूं।।
रौद्र रूप धर रण में नाचूं, वीरभद्र बिकराल बनूं ।
मां से जाकर कहो हवाएं,मै तेरा फिर लाल बनूं।।
लड़ते लड़ते प्राण गवां दूं,मां का सच्चा लाल बनूं ।
वन जाऊं मै वीर शिवाजी,लाल बाल उर पाल बनूं।।
यही कामना है”कृष्णा”की,मै दुश्मन का काल बनूं ।
मां से जाकर कहो हवाएं ,मै तेरा फिर लाल बनूं।।
✍️ कृष्णकांत गुर्जर