सिन्दूर
लाल रंग सिन्दूर का, होता शक्ति प्रतीक।
कमजोरी समझो नहीं , दुर्गा रूप सटीक।। १
सुर्ख लाल सिन्दूर में, छुपा शक्ति का राज।
इस ताकत के सामने, हार गये यमराज।। २
माँग भरी सिन्दूर से, नहीं सिर्फ श्रृंगार।
पति पर जब विपदा पड़े, बन जाता हथियार ।। ३
चुटकी भर सिन्दूर में, है पूरा ब्रह्मांड।
जो मंगल सूचक सदा, रखे सुहाग अखंड।। ४
माँग भरूँ सिन्दूर से, कर सोलह श्रृंगार।
लाल चुनरिया ओढ़ कर, चली पिया के द्वार।।५
चुटकी भर सिन्दूर से, बदल गया संसार।
छूटा बाबुल आँगना,मात-पिता का प्यार।। ६
सजे लाल सिन्दूर से, सपनों का संसार।
सुन्दर मन-भावन सजन, लेकर आये प्यार।। ७
देवी पूजन में सदा, हो प्रयोग सिन्दूर।
बनी रहे उनकी कृपा, सुख वैभव भरपूर।।८
देवी की आराधना, करने के दौरान।
भेंट चढ़े सिन्दूर,फल, फूल,मिठाई,पान।। ९
बंगाली समुदाय में, होता इक दस्तूर।
दुर्गा पूजा में खेलती, महिलाएं सिन्दूर।। १०
अति प्रिय प्रभु श्री राम को ,सीता जी से जान।
पूरे तन सिन्दूर से, पोत लिए हनुमान।। १ १
दिल से दिल मिलता नहीं, क्या करना सिन्दूर।
ऐसे बंधन से अलग, अच्छा रहना दूर।।१२
—लक्ष्मी सिंह