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14 Oct 2018 · 2 min read

सिनेमा में बढ़ती अश्लीलता का बच्चों पर असर

सिनेमा में बढ़ती अश्लीलता का बच्चों पर असर
सिनेमा या दूसरे शब्दों मे चलचित्र में बढ़ती अश्लीलता वर्तमान में बच्चों के लिए अभिशाप बनती जा रहा है। जिसका असर न केवल सामान्य व्यक्ति बल्कि आजकल के बच्चों पर साफ- साफ दिखाई देने लगा है। सभी जानते हैं कि मीडिया जनसामान्य के मनोरंजन का एक महत्वपूर्ण स्रोत है । आज बच्चों ने उन सभी टीवी कलाकारों को अपना आदर्श बनाना प्रारंभ कर दिया है जो रंगमंच के माध्यम से अधिक से अधिक अश्लील हरकतें एवं संवाद करते हैं । अगर देखा जाए तो उन कार्यक्रमों में मनोरंजन का माध्यम ही केवल अश्लीलता पूर्ण संवाद रह गया है । भारतीय सिनेमा को एक समय आदर्शवादिता संस्कार एवं प्रेरणा का एक मुख्य स्रोत माना जाता था जब रामायण , महाभारत व राजा हरिश्चंद्र जैसी फिल्में दिखाई जाती थी । लेकिन आजकल सिनेमा अपनी सारी हदें पार कर चुका है । आप देखेंगे कि आज फिल्मों के नाम और शहर के चौराहों पर लगे पोस्टर अश्लीलता की हदें पार कर रहे हैं । फिल्म लोगों को अपनी आदर्शवादिता की बजाए बेशर्मी से आकर्षित कर रही है । अश्लील दृश्य एवं नामों वाली फिल्मों को हिट फिल्मों का दर्जा मिल गया है । यह बड़े हर्ष की बात है की रंगमंच से जुड़े कुछ कलाकार संवादों में दोहरी भाषा का प्रयोग करके बच्चों व खासकर नवयुवकों का आकर्षण खींचने का प्रयासरत रहते हैं । इस तरह के अश्लील संवादों और दृश्यों का प्रयोग किया जाता है जो आम आदमी अपने घरों में पूरे परिवार के साथ बैठकर नहीं देख पाते । आज माता- पिता के लिए बहुत मुश्किल हो गया है कि वो किस तरह अपने बच्चों में बढ़ती हुई इस महामारी जैसी मानसिकता को रोकें और उनमें संस्कारों का निर्माण करें । मेरी सरकार एवं फिल्म सेंसर बोर्ड में बैठे प्रतिनिधियों से गुजारिश है कि वो चलचित्र में पनपने वाली इस महामारी को रोकने का प्रयास करें अन्यथा भविष्य में इसके बुरे परिणाम निकलेंगे ।

Language: Hindi
Tag: लेख
1534 Views
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