सिद्धांत एवं व्यवहारिकता
तर्क और नैतिकता सिद्धान्त के आधारभूत स्तंभ हैं, जबकि व्यवहार सामान्य हितों को दृष्टिगत रखते हुए व्यावहारिक अनुप्रयोग में सिद्धांतों का विचलन हैं।
सिद्धांतों का पालन कानून का निर्माण करता है। जिसे अनुशासित तरीके से कार्रवाई और निर्णयों में सामंजस्य लाने के लिए लोगों द्वारा पालन करने की आवश्यकता होती है जो तार्किक रूप से स्वीकार्य मानदंडों पर आधारित हो।
एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में कानून का पालन कराना शासन के लिए आवश्यक है, जिसमें प्रत्येक नागरिक द्वारा उसके कृत्य और सामाजिक कल्याण को दृष्टिगत् रखते हुए उसे उसकी अभिव्यक्ति की जिम्मेदारी का बोध हो।
कानून संविधान के तार्किक मंच पर अपने कार्यों और भावों की गंभीरता को पहचानने और वर्गीकृत करने की सार्वजनिक सोच में सकारात्मक बदलाव लाता है।
शासन का कानून राज्य के सुचारू संचालन के लिए लोगों को नियंत्रित करता है और सद्भाव लाता है, और सरकार को जनकल्याण हेतु अपने विचारों और योजनाओं को लागू करने के अलावा, एक देश के नागरिकों के रूप में सार्वजनिक सोच में कर्तव्यों के निर्वाह की भावना को बढ़ाने के लिए सहायक होता है।
सिद्धांत कानून के गठन के मूल तत्व हैं, लेकिन सिद्धांतों के सख्त पालन के साथ कानून को संरचित करना बड़े पैमाने पर जनता में असहष्णुता और असहमति का भाव उत्पन्न करता है ।और इसके विरुद्ध नाराजगी और विद्रोह को जन्म देता है। इसलिए, नियमों की कठोरता से अनुपालन के दृष्टिकोण के स्थान पर लोकहित को दृष्टिगत् रखते हुए वर्तमान पर्यावरण और स्थितियों के आधार पर आकलन तथा संरचना मे व्यावहारिक अनुप्रयोग की आवश्यकता होती है।
लोकहित दृष्टिकोण के सकारात्मक पक्ष पर सिद्धांतों का उचित विचलन वांछनीय है। और जनता द्वारा इसकी स्वीकृति से शासन प्रणाली को बल मिलता है, बजाय इसके कि आबादी के बड़े हिस्से द्वारा लागू कानून को अस्वीकार्य बनाया जाए और इसके परिणामस्वरूप इसके विरुद्ध असहमति जनआन्दोलन का स्वरूप लेकर उभरे ।
जमीनी हकीकत में निष्पक्ष मुक्त दृष्टिकोण एवं नीति के आधार पर लोगों को न्याय प्रदान करने के लिए कानून की संरचना एवं समयबद्ध संशोधन की सही दिशा में व्यावहारिक अनुप्रयोग हेतु सिद्धांतों में लचीलापन लाने की आवश्यकता है।
कानून की मान्यता और समय बीतने के साथ इसकी प्रभावशीलता के आकलन हेतु समय-समय पर इसकी समीक्षा आवश्यक है जिससे इसे प्रभावी तरीके से स्वीकृति और कार्यान्वयन के लिए उपयुक्त बनाया जा सके।
इसलिए सिद्धांत और व्यवहारिक कार्यान्वयन कानूनी सिक्के के दो पहलू है ।
यहां यह ध्यान देने योग्य है कि किसी व्यक्ति , समूह या समाज के किसी वर्ग को लाभ पहुँचाने की दृष्टि से बुनियादी मानदंडों / आधारों को ताक पर रखकर सिद्धांतों / कानून के किसी भी विचलन को कभी अनुमति नहीं दी जानी चाहिए और इसे शासन को कठोरता से रोका जाना चाहिए।
व्यावहारिक अनुप्रयोग के बिना सिद्धान्तों के सख्त पालन से विचारों की कठोरता को बढ़ावा मिलता है, और दूसरों के विचारों की अस्वीकार्यता के मनस का निर्माण होता है। और काफी हद तक इससे विश्लेषण और निर्णय लेने की प्रज्ञा शक्ति प्रभावित होती है।