सितामढी़
सीता जन्मी भूमि पर, मिथिला का है मान,
पावन धरा की महिमा, कहे सबको ये स्थान।
हिमालय की गोद में, खिली सीत की कली,
धरती से निकली देवी, बनी राम की सहचरी।
मिथिला के हर कण में, है सीता की कहानी,
जनक जननी की छाया में, बढ़ी वह प्रेम रानी।
गौरव की ये गाथा, गूंजे हर दिल के साथ,
सीता की महिमा गाए, सारा मिथिला का पथ।
सीतामढ़ी की भूमि, है पूजन का स्थल,
श्रद्धालुओं की कतारें, करती देवी का बल।
मंदिरों की घंटियों में, गूंजे जयकार,
मिथिला का ये गौरव, रहे सदा अपरंपार।
सीता की पावन कथा, सिखाए प्रेम, त्याग,
मिथिला की हर बेटी, है उसी का प्रतिरूप भाग।
जय-जय मिथिला बोलें, जय-जय जानकी मां,
धरा पर जिसने जन्म लिया, वह बनी सबकी रमा।
—–श्रीहर्ष