सितम ये वक़्त ने ढाया’ तो आँख भर आई।
सितम ये वक़्त ने ढाया’ तो आँख भर आई”
हुआ जो अपना पराया’ तो आँख भर आई।
वो जिसके क़दमों में हमने गुलाब रक्खे थे”
उसी ने काँटा चुभाया’ तो आँख भर आई।
हसीन ख्वाब था उस वक़्त मेरी आँखों में”
किसी ने मुझको जगाया’तो आँख भर आई।
गुनाह करते रहे यूँ तो बेखुदी में हम”
मगर जो होश है आया’ तो आँख भर आई।
खफा थी मुझसे वो मुद्दत से इक नहीं बोली”
जो माँ ने मुझको बुलाया’ तो आँख भर आई।
वो जिसकी दीद को मांगी थी मौत से मोहलत”
वो मेरे रू ब रू आया’ तो आँख भर आई।
जमील हाथ जो अपना मेरे हम साए ने”
मेरे खिलाफ उठाया’ तो आँख भर आई।
•••••••••••••••••••••••••••••••••••
जमील सक़लैनी