सिकंदर अब भी रोता है
हँसी है होठ पर लेकिन वो अंदर अब भी रोता है
पलट इतिहास के पन्ने सिकंदर अब भी रोता है
बहुत की कोशिशें लेकिन न खारापन गया उसका
किसी दरिया से मिलने को समंदर अब भी रोता है
खड़ी है दरमियाँ रिश्तों के ये दीवार सदियों से
इसी की आँड़ लेकर के मिरा घर अब भी रोता है
तुम्हारे याद की शबनम जगा देती हैं रातों को
है गीली आज भी तकिया ये बिस्तर अब भी रोता है
मजारों पर चढ़ाता था जो अपनी नज़्म की चादर
खुदा के वास्ते देखो कलंदर अब भी रोता है
बिखर आई है जब से चाँदनी छत पर तिरे ‘संजय’
उठा सर देख चंदा आसमाँ पर अब भी रोता है