साहित्य सार
साहित्य सागर अपार है।इसके दो रूप मुख्यत नजर आते है। एक लिखित दूसरा श्रव्य ।लिखित में प्राचीन से लेकर अर्वाचीन तक लिखे गये ग्रन्थ पान्डूनिधि पत्र पात्रिका डॉयरी आदि आतेहै। और श्रव्य में जो सुना गया या सुना जाता हैं।
यहाँ पर मैं श्रव्य साहित्य की बात करूगा जिसमे कथा ,कहानी, कविता, तुकबन्दी , लोक गान, गीत आदि आते ही। इसी आधार पर इनके लेखक वाचक जाने जाते है।
जैसे कथावाचक कवि आदि। इसके भी दो भाग होते है।एक स्वाभाविक दूसरा आयोजित या प्रायोजित । स्वाभाविक साहित्य देशकाल परिस्थिति के अनुसार निकल जाता है उसका प्रमाण सुरक्षित नही होता। दूसरा आयोजित होता है इसका प्रमाण सुरक्षित रखा जा सकता है।इसमें प्रमुख रूप स पारिवारिक सामाजिक कार्यक्रम आते हैा और इसी की एक कडी सार्वजनिक भी होती है। जिसमें भाषण ,कवि सम्मेलन आदि आते है। भाषण भी दो प्रकार के हो सकते है।एक स्वयं भाषण कर्ता का तैयार किया हुआ।दूसरा किसी घोस्ट लेखक का लिखा हुआ। इसी प्रकार काव्य गोस्ठी मैं भी दो तरह के कवि हो सकते है। एक स्वयं की सृजित पढ़ने वाले एवम् दूसरे किसी अन्य का सृजन प्रस्तुत करने वाले। दूसरे के सृजन की प्रस्तुति संकलन कहलाती है। यहां पर एक नकारात्मक साहित्यकार भी उबर कर आते है जो किसी अन्य के सृजन को अपने नाम से प्रस्तुत कर देते है इनको सहित्यचोर कहा जाता है। नकारात्मक साहित्य, भाव के ऊपर भी विश्लेषित किया जा सकता है। जिसमें किसी का अनिष्ट होता हो। भाव के आधार पर भी साहित्य की विवेचना होती है। जैसे काव्य में हास् ,व्यंग, श्रृंगार आदि।इसी आधार पर साहित्यकारों के नाम पड़ जाते है जैसे हास्य कवि ,ओज कवि इत्यादि। आजकल मेरे हिसाब से कुछ प्रजातियां विकसित हो गई है जिनका उल्लेख मैं यहां करना चाहूँगा। यह है 1. याचक 2 बिकाऊ 3 टिकाऊ 4 भड़काऊ 5 चोर 6 दिखाऊ आदि।
जैसे
1.याचक का मतलब यह हाथ जोड़ जोड़ कर काम मांगते है ।इनका उद्देश्य नाम कमाना होता है कैसे भी।कवि सम्मेलन में मुझे बुलाओ कृपया या एक चांस मुझे भी दीजिये ना आदि आदि इसी श्रेणी में आते है।।
2. बिकाऊ ~ यह अपनी समस्त गतिविधियों को अर्थ अर्जन के हिसाब से संचालित करते है। इनके लिये साहित्य एक व्यवसाय होता है।
3. टिकाऊ ~ यह उन्नत विचारों के धनी होते है और मैं इनको सहित्यसेवी के रूप में देखता हूँ। इनका सृजन ही वास्तविक साहित्य का रूप होता है जो दीर्घकाल तक याद किया जाता है।
4. यह ऐसे सृजन की नींव रखते है जो भावनाओं में उबाल लादे यह तालियों के साथ साथ गालियों को भी ग्रहण करते है।
5.चोर ~ इनके लिये शब्द देकर मैं शब्दों का अपमान नही करना चाहता आप स्वयं समझ सकते है।
6. यह लोग साहित्यकार से दीखते है साहित्यकार नही होते यह अपने साहित्य सृजन के लिये अन्य के सृजन का सहारा लेकर आगे बढ़ते है। इसके अतिरिक्त भी कई प्रजातियां है जिनसे मूल साहित्यकार दबता चला जा रहा है।
(अस्तु मेरे मूल निबन्ध के सार से )
मधु गौतम*atrutop*