सावन
सावन
उफ़ ये बारिश,
रोता आसमाँ,
सिसकती धरती,
बिजली कड़की,
बीवी भड़की,
संगदिल बेरहम,
वो मजनू हुआ,
कहाँ है उसका टीला
वो कहाँ ही गया,
मौसम बेरहम
घर में ना हम
हुआ है दिल बड़ा ही परेशान
बार बार सताये उसकी याद
जैसे तैसे में पहुँच गया
उसके अब्बा को देख दिल सहम गया ।
ना हुई मुलाक़ात ना ही कोई बात
दिल में रह गई बस उसकी याद ।
यादों के झरोखें बहुत रुलाए
उफ़ ये सावन घनघोर घटाएँ,
तड़प तड़प दिल रह जायें
पिया बसंती काहे ना आयें
नैन मेरे नीर बहाएँ,
अबके बरस सावन बहुत सतायें
बहुत सतायें ।