सावन में
सावन की रिमझिम से गीली चुनरिया
चिपकी है जैसेकि चिपकें सवरिया ।
बरसो भले ही, पर कड़को न बदरा
अकेली हूँ घर में, मैं उनकी दुलरिया ।
सावन में तन मन को भाये उछलना
अंगड़ाई जब ली, सधी ना अंगरिया ।
बिजली ने छू लिया, अनसधा यौवन
जा मिली बादल में. खा कर गुलटिया ।