सावन भादों की बारिश सा प्यार
सावन भादों की बारिश सा प्यार
***************************
सावन-भादो की बारिश सा है ये प्यार
कभी जी भर खूब बरसता है तो
कभी बदल लेता है अपना रास्ता
देखकर स्वार्थी लोगो का गिरता जमीर
और पल पल पर बदलता स्वभाव
जिनके भीतर तलक भरा है
लावे सा सघन जहर
तनिक सी भी नहीं है प्रेम की लहर
रोज बेचता रहता है रिश्तों को
जीवन में जरूरत हेतु किश्तों में
नहीं छोड़ा अब तो माँ-बहन को
बेच दिया खुद के स्वाभिमान-जहन की
प्रतिदिन लगाता है वो बोलियां
भरने के लिए निज की झोलियां
नहीं रही बुझे चेहरे पर मुस्कान
भरा हुआ है कंठ तलक अभिमान
खोल रखी है स्वर्थों की दुकान
मनसीरत खुद पर ही मेहरबान
*************************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)