सावन की आ गई बहार
आज व्योम मंडल सुशोभित हो उठा
सावन की आ गई बहार हैं
प्रभात की मुस्कान और बूंदों का यूँ आना
है खामोश सा धवल नूर शशि का का देखो
खग विहग सब जाग उठे नीड़ अपने खोजते
आज प्रभात का करती स्वागत व्योम की दामिनी
आज व्योम मंडल सुशोभित हो उठा
सावन की आ गई बहार हैं
अपनी मीठी मधुर तान से दादुर भी आज बोल उठे
पेड़ पौधे भी धुल कर साफ़ सुथरे हो लिए
हर कली मुस्काई लताये भी इठलाने लगी
सुंदर भोर की अरूणाई आभा से महक उठा गगन
आज व्योम मंडल सुशोभित हो उठा
सावन की आ गई बहार हैं
शीतल सा है नभ का सारा आंचल भीगा आज
और जग भी है हर्षित मग्न बूंदों के आगमन से
नई ऊर्जा पाने को व्याकुल प्रकृति भी ह6 ततपर
हर नई सुबह का सूर्योदय प्यारा पर आज ओर भी न्यारा
आज व्योम मंडल सुशोभित हो उठा
सावन की आ गई बहार हैं
मेरे लिए बन जाती बारिश जीने का सहारा
उनकी यादों को वो कर जाती सदा ताजा
उन्हें देख मेरे नैनो में भर जाता प्यार भरा पानी
नई आशाओं का तराना लिए मैं हो जाती विभोर
आज व्योम मंडल सुशोभित हो उठा
सावन की आ गई बहार हैं
रुक गई बूंदे तो तमतमाता सूरज सबसे कहता
तप कर मेरी तरह जग को चमका कर तो देखो
पंछियों के कलरव को सुन मन मेरा अंगड़ाई लेता
बून्द की कृति की धुन सुनने को मन करता
आज व्योम मंडल सुशोभित हो उठा
सावन की आ गई बहार हैं।
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद