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12 Jun 2023 · 1 min read

सावनी श्यामल घटाएं

** नवगीत **
*********************
छा रही हैं
*
नील नभ पर छा रही हैं,
सावनी श्यामल घटाएँ।

गर्मियां तपती दोपहरी,
में सभी व्याकुल हुए हैं।
खिन्न मन बोझल कदम ले,
अनमने आगे बढ़े हैं।
सोचते हैं आ गई अब,
राहतें बनकर हवाएँ।
नील नभ पर…..

सूखती जलधार फिर से,
छलछलाती बह चलेगी।
पेड़ की प्यासी टहनियाँ,
तृप्त होकर खिल उठेगी।
देखना फिर किस तरह से,
हरित होंगी भावनाएँ।
नील नभ पर….

है बहुत ही भीगने में,
देखिए आनंद कितना।
और भीगा जा रहा हो,
जिन्दगी का स्वप्न अपना।
आज सिमटी जा रही सी,
लग रही फैली दिशाएँ।
नील नभ पर….
*********************
-सुरेन्द्रपाल वैद्य

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