सार जीवन का
!! श्रीं !!
(गीतिका -आधार छंद आल्ह/वीर छंद – 31 मात्रा , 16- 15 पर यति, चरणांत गाल, समांत आर , अपदांत !!)
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सार जीवन का
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माया बनी शिकारी डोले, छिपकर बैठी करे शिकार ।
बचा न बचने पाया कोई, व्यर्थ हुए सारे हथियार ।।१
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सीना ताने अहम् खड़ा है, लगा रखी मैं-मैं की टेर ।
फंदा कसा बुढ़ापे ने जब, टेरे प्रभु की करे पुकार ।।२
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कंचन काया मल-मल धोई, खूब लगाये इत्र फुलेल ।
भूल गया केशों की कंघी, खाट पड़ा क्या सोचे यार ।।३
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कितने सुंदर सपने देखे, धन दौलत संतति भरपूर।
कुछ पूरे कुछ रहे अधूरे, हो न सके क्यों सब साकार ।।४
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माया जोड़ी कोष सँजोये, तन-मन का बिसराया चैन ।
पड़ा अकेला अब क्या सोचे, किसके लिये उठाया भार ।।५
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अद्भुत है ईश्वर की माया, सब जानें पर माने कौन ?
लगे रहें सब संचय में ही, किंचित नहीं करें उपकार ।।६
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पड़े रहेंगे कोष खजाने, संग न जाये एक छदाम ।
‘ज्योति’ भजन अब तो कर प्रभु का, यही उतारे भव से पार ।।
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महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा ।
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