#कविता//सार्थक समूह
शीर्षक – ‘सार्थक समूह
सुनने कुछ भाव सुनाने को,जनहित में ज्ञान बढ़ाने को।
सदा समूह बने हैं जग में,नव पथ उचित दिखाने को।
इक नदिया बहा विचारों की,
सुघर अमर संस्कारों की।
मन भेदरहित अधिकारों की,
मानवता आधारों की।
उलझन मन की सुलझाने को,
प्रेम सभी का पाने को
शांत कांत हृदय बनाने को,
मन का द्वेष भगाने को।
सदा समूह बने हैं जग में,
नव पथ उचित दिखाने को।।
कहना सुनना सीखा जाए,
बात कहो आत्म सुहाए ।
ज्यों गीत सदा सुर में भाए,
कविता वो रस टपकाए।
त्रुटियाँ निज और भगाने को,
सच आइना दिखाने को।
आलोचना शुद्ध पाने को,
सीखो और सिखाने को।
सदा समूह बने हैं जग में,
नव पथ उचित दिखाने को।।
अपनी-अपनी गाना छोड़ो,
संतुलन बनाना होगा।
अपने खातिर चाहो जैसा,
सबसे हित लाना होगा।
हरजन का मान बढ़ाने को,
सुख का वैभव पाने को।
हृदय-हृदय में बस जाने को,
सोया जोश जगाने को।
सदा समूह बने हैं जग में,
नव पथ उचित दिखाने को।।
#आर.एस.”प्रीतम”