साया ढूंढते हैं !
साया ढूंढते हैं !
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पहले जंगल जलाया
अब पेड़ का साया ढूंढते हैं!
पहले बाग उजाॾा;
अब फूलों में सुगंध ढूंढते हैं!
क्या है उनके मन में?
वे खुद नहीं जानते !
लड़ते हैं;झगड़ते हैं
फिर नये संबंध ढूंढते हैं !
बस्ती बसाई थी जिसने;
जला डाला खुद ही;
दुनिया के दिखावे को;
उसी बस्ती के निशाँ ढूंढते हैं।
दुनियां बदलने का,
दम भरते थे वो;
न बदल सके खुद
को कभी;
कहने को अदब,
का सबब,ढूंढते हैं
अंधेरे में भटकते रहे
जो उम्र भर;
जला के झोपड़ी ग़रीब की
रौशनी में उसकी
खोया अपना साया ढूंढते हैं।
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राजेश’ललित’