सामंजस्य हमसे बिठाओगे कैसे
तुम ठहरी ऊंचे महलों की रानी
और हम ठहरे इक बंजारा मुसाफिर
जिंदगी के सफ़र में बनकर हमसफर
सामंजस्य हमसे बिठाओगे कैसे
तुम्हारे कंपकंपाते अधर बता रहे हैं
हाल क्या है दिल के मौसम का
आखिर कब तक नजरे यूं ही झुकाकर
दिल के राज़ हमसे छिपाओगे कैसे
हमने तो दिल की बात कही थी
और तुम हो कि नाराज होकर बैठ गए
तनहाई में बैठकर सोचना कभी
हम रूठ गए तो हमें मनाओगे कैसे
जानम ये इश्क़ भी क्या इश्क़ हुआ
मतलब क्या निकला नजरें ही फेर ली
टकराएंगे कभी अगर किसी मोड़ पर
सर उठाकर नज़रें हमसे मिलाओगे कैसे
सुना है चर्चे हमारी चंद मुलाकातों के
अब हर ज़ुबान पर चढ़कर बोलते हैं
चलो क्यों न थाम लें हाथ एक दूजे का
बात आगे बढ़ गई तो फिर दबाओगे कैसे