साधु और तीन शिष्य
एक बार एक साधु अपने तीन शिष्यो के साथ कहीं जा रहे थे। उन शिष्यो के नाम मधुर, कवीर और बबलू थे। मधुर मीठा बोलता था, इसलिए सब लोग उसे पसंद करते थे। कवीर और बबलू की आवाज में मिठास नही थी, इसलिए उनका दुसरो से झगड़ा भी हो जाता था। रात का समय था। तेज सर्दी पड़ रही थी। सर्दी के कारण उन सब का बुरा हाल था, कुछ दूर आगे चलने पर उन्हें एक झोपड़ी दिखाई दी। वे बहुत खुश हुए। साधु ने कवीर और बबलू को झोपड़ी से लकड़ी लेने के लिए भेजा। गुरु के कहते ही वे दोनो चल दिए। वे झोपड़ी के पास गए और उन्हें झोपड़ी के अंदर एक बुढि औरत दिखी। वे दोनो बोले , बुढ़िया हमें लकड़ियाँ दे दे लेकिन बुढ़ि औरत ने उनकी तरफ नही देखा। वो दोनो कुछ देर वहां खड़े रहे लेकिन बुढ़ि औरत ने कोई जबाव नही दिया। तब वो दोनो वापस अपने गुरु के पास आ गए और उन्हें पूरी बात बताई। गुरु जी जान गए कि ऐसा क्यों हुआ, पर उन्होंने कुछ नही कहा।
अब उन्होंने लकड़ी लेने के लिए मधुर को भेजा । मधुर गया और उस बुढि औरत से बोला– “दादी जी, प्रणाम।”
बुढि औरत ने उसकी और गर्दन घुमाई और बोली — ” जीते रहो, बेटा।”
मधुर ने कहा — ” दादी जी, थोडी सी लकड़ियां चाहिए। मेरे साथ मेरे मेरे गुरु जी और गुरुभाई भी हैं। हम लोगों को बहुत तेज सर्दी लग रही हैं। ”
वह औरत ख़ुशी खुशी बोली ” हां बेटा, लकड़ियाँ ले जाओ। अगर जरुरत पड़े, तो और ले जाना।”
मधुर लकड़ियां लेकर वहां पहुंचा , तो कवीर और बबलू उसे हैरानी से देखने लगे। उन्हें विश्वास नही हो रहा था कि बुढियां ने मधुर को लकड़ियाँ दे दी।
गुरु जी बोले — ” कवीर और बबलू , अब तुम्हारी समझ में बात आई ? मीठी बोली से बिगड़े काम भी बन जाते हैं। अगर तुम उस बुढि औरत से मीठा बोलते, तो वह तुम्हे लकड़ियाँ जरूर दे देती। आगे से इस बात का ध्यान रखना।”
कवीर और बबलू बोले अब हम हमेशा मीठा ही बोलेगे।