साधुवाद और धन्यवाद
अक्सर यह देखने में आता है कि कुछ उच्च पदस्थ, वयोवृद्ध और सुशिक्षित लोग साधुवाद शब्द का प्रयोग धन्यवाद के समानार्थी के रूप में करते हैं। इसके पीछे मुख्य कारण अपने आपको दूसरे से अलग दिखाना होता है।उन्हें लगता है कि साधुवाद धन्यवाद का एक परिष्कृत और परिमार्जित शब्द है।वास्तव में ऐसा नहीं है।यह तर्क उन लोगों के द्वारा गढ़ा गया प्रतीत होता है जो लोग स्वयं अहम भाव से ग्रसित हैं और ऐसा करने वालों की गलती पर पर्दा डालने की कोशिश करते हैं। सच्चाई यह है कि ऐसा करने वाले लोग किसी न किसी रूप में अपने आपको बड़ा मानते हैं।चाहे पद की दृष्टि से , चाहे उम्र की दृष्टि से या फिर शिक्षा के कारण। यह श्रेष्ठता ग्रंथि उन्हें अपने से छोटे (उम्र ,पद या ज्ञान की दृष्टि से) के प्रति कृतज्ञताभाव से विरत करती है और वे सायास साधुवाद शब्द का प्रयोग करते हैं जो कि कतई उचित नहीं है। शब्दों के सूक्ष्म अंतर से जनसामान्य भले ही परिचित न हो यदि प्रयोक्ता अर्थगत भिन्नता से अवगत है तो उसे शिष्टता और शालीनता का परिचय देते हुए उचित शब्द के माध्यम से कृतज्ञता की भावाभिव्यक्ति करनी चाहिए। शाब्दिक मायाजाल के पीछे अपने आपको छिपाना नहीं चाहिए।
साधुवाद और धन्यवाद दो पृथक शब्द हैं या दोनों समानार्थी हैं।यदि दोनों पृथक शब्द हैं तो फिर दोनों शब्दों को समानार्थी रूप में प्रयोग नहीं किया जा सकता।इसके लिए दोनों शब्दों के अर्थ जानना आवश्यक है।साधुवाद शब्द दो शब्दों साधु+वाद के योग से बना है। साधु का अर्थ होता है- उत्तम, उपयुक्त, शिष्ट आदि और वाद का अर्थ है-बोलना या बात कहना। इस दृष्टि से साधुवाद शब्द किसी के उत्तम कार्य की प्रशंसा का द्योतक है।साधुवाद का अर्थ हुआ – ऐसे शब्द या एक ऐसी बात जिसके जरिए किसी को साधु कहा जाए। इसी तरह धन्यवाद शब्द भी धन्य+वाद के योग से निर्मित है।धन्य का अर्थ है- पुण्यात्मा, प्रशंसनीय और वाद का बोलना या बातचीत। इस हिसाब से धन्यवाद का अर्थ हुआ- ऐसे शब्द या एक ऐसी बात जिसके जरिए किसी को धन्य कहा जाए।अतः किसी को धन्यवाद कहने का अर्थ है ऐसा कहना कि वह व्यक्ति धन्य है ।
साधुवाद कहने का अर्थ है कि वह व्यक्ति साधु है ।इस साधु शब्द का अर्थ संन्यासी नहीं है । ये साधु शब्द सज्जन या अच्छा के लिए प्रयुक्त होता है । संस्कृत में साधु का अर्थ है- अच्छा । ये बात अलग है कि संन्यासी या आध्यात्मिक रूप से समर्पित व्यक्ति को अच्छा मानने के कारण साधु कहते हैं ।अर्थात संस्कृत में जहाँ-जहाँ साधु और धन्य शब्दों का प्रयोग करते हैं, उन्हीं स्थानों पर हिन्दी में क्रमशः साधुवाद और धन्यवाद शब्द आ गये हैं ।
अब प्रश्न ये है, कि साधुवाद और धन्यवाद में से कहाँ, किसका प्रयोग किया जाना चाहिए ? जब किसी की प्रशंसा करनी हो तो निश्चय ही साधुवाद शब्द उचित है, न कि धन्यवाद। लेकिन कई लोग ऐसा भी समझने लगते हैं कि साधुवाद,धन्यवाद का ही अधिक परिष्कृत रूप है, और वे धन्यवाद की जगह पर साधुवाद शब्द का प्रयोग करते हैं जो कि अनुचित है । साधुवाद शब्द कृतज्ञता अभिव्यक्ति का वाचक नहीं है , यह केवल स्तुतिवाचक है यानी प्रशंसा का द्योतक । जैसे ये प्रयोग गलत होगा- आपके उपकार के लिए मैं आपका साधुवाद करना चाहता हूँ । सही प्रयोग ये है- आपके उपकार के लिए मैं आपका धन्यवाद करना चाहता हूँ । किसी के द्वारा व्यक्तिगत या निजी रूप से लाभ पहुँचाए जाने पर धन्यवाद कहना उचित है, जबकि किसी व्यक्ति द्वारा सार्वजनिक लाभ पहुँचाए जाने पर यानी बहुतों का भला किए जाने पर साधुवाद कहना उचित है । ये भी ध्यान रहे कि आपके पास धन्यवाद शब्द के हिंदी में और भी विकल्प हैं- जैसे कि आभार , कृतज्ञता,जबकि उर्दू में मेहरबानी आपकी और शुक्रिया।