साथ अपनो का
जब अपने अपने ही न बने रहे
तब जीवन अंधकार मय होता हैं
धुआँ धुआं सा दिखता हैं
मन बहुत दुखी हो जाता हैं
सारी खुशियां रह जाती हैं
बस दुख ही दुख मिल जाता हैं
अहंकार जब होता हैं तब
रिश्ते नाते रह जाते है
छल कपट आ जाता जहां
वहां कुछ शेष नही रहता हैं
कोई कंधा जब न मिले रोने को
कष्ट बहुत हो जाता हैं
अपनो का पता दुख में चलता
जब साथ खड़ा वो होता हैं
स्वार्थ के रिश्ते नही चलते
दुख बहुत दे जाते है
कोमल ह्रदय द्रवित होता
जब साथ अपने होते है
साधन चलो बहुत है तब भी
खुशी नही मिल पाती हैं
जब साथ नही अपने होते तो
सुख नही मिल पाता है
काया मे कष्ट चाहे कितने हो
यदि साथ अपनो का होता हैं
तो मात कष्ट ही खाते है
स्वार्थ यदि होगा मन मे तो
अपनत्व नही हो सकता है
साथ यदि छूटा सब का तो
ह्रदय झुलस ही जाता हैं
कुछ शेष नही रहता तब तो
जब अपना कोई साथ नही होता
संघर्ष भी कम ही होता हैं जब
साथ अपनो को मिलता हैं
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद