साथी (ईश्वर)
सूनेपथ ( जीवन – मौत) के अविचल साथी
बसहि मन अमिट मानसी
मिलहि मेरे दिन – राती (नित्य जीवन )
आवत न कछू मोहे
विगत पर भार समान सोहे
कुछ विनती करन्यासी
छोड़त नाहि अविनाशी
माँगत अविचल मन नाहीं
महापूँज मन निर्मल नाहीं
देहूँ मोहे सरल पुकारी
जे पुकारे रामकृष्ण तोहें।
प्रकट मूरत सकल सकारें
बैठिहि (हाथ जोड़ें) कर – मन जोड़े।
जे पुकार सुन मानस मोरे _ डॉ. सीमा कुमारी,बिहार
भागलपुर, दिनांक–2-3-07 की मौलिक एवं स्वरचित रचना जिसे आज प्रकाशित कर रही हूं।