सागर से अथाह और बेपनाह
सागर से अथाह और बेपनाह
भला कौन होगा
सागर से बड़ा इतना गहरा पड़ा
भला कौन होगा
बस एक ही कमी का ये मारा है
पानी मीठा नहीं इसका खारा है
सागर सा एकांत बड़ा ही शांत
भला कौन होगा
लहर-लहर लहराता ही जाए
किनारों को छूकर लौट जाए
सागर सा अधीर लिए इतना नीर
भला कौन होगा
घटा बनकर घनघोर बरसता है
जल में जल मिलने को तरसता है
सागर की प्यास बुछती है आप
भला कौन होगा
विकराल हो जाए तो सबको डराए
बढ़ता है जैसे सबको निगल न जाए
सागर सा तुफान सुनो विनोद चौहान
भला कौन होगा