*साँसो का अचानक बेशकीमती हो जाना (एक शब्द-चित्र)*
साँसो का अचानक बेशकीमती हो जाना (एक शब्द-चित्र)
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बड़ा अजीब दौर चल रहा है । साँसे जल्दी-जल्दी लेने को मन करता है । जितनी ज्यादा ले लो ,आदमी सौभाग्यशाली मानता है । कल तक साँस लेना और छोड़ना दोनों मामूली बातें थी । फ्री में मिलती थीं। जितनी चाहे लो और दरियादिली दिखाते हुए छोड़ते चले जाओ । कोई चिंता की बात नहीं थी। एक छोड़ेंगे ,दो आएँगी । चाहे रात हो चाहे दिन ,साँस लेना भी भला अपने आप में कोई सोचने वाली बात थी ।
न जाने किसकी नजर साँसो पर लग गई । इधर नजर लगी ,उधर साँस उखड़ने लगी । आती है ,तो बड़ी मुश्किल से जाती है और जाने के बाद फिर लेना पड़े तो ऐसा लगता है जैसे भैंसा-गाड़ी में से भैंसे हटा दिए गए हों और गाड़ी खींचने पड़ रही हो ।
एक साँस लेना पहाड़ की चोटी पर चढ़ने के बराबर मुश्किल काम हो गया । जैसे-तैसे हाँफते हुए आधी साँस ली जाती है और फिर समझ में नहीं आता कि इसे पूरा कैसे करें ? जिस तरह पहाड़ की खड़ी चढ़ाई पर हर समय यह खतरा रहता है कि पैर फिसला और सीधे खाई में लौटते चले गए, ठीक उसी प्रकार आधी साँस रास्ते में अटकी हुई है । पूरी होना कठिन है और फिसलने का खतरा अपनी जगह है । अगर पकड़ मजबूत नहीं रखी तो सब किए-धरे पर पानी फिर जाएगा ।
अब आप सिचुएशन को समझिए । आधी सांस ली जा चुकी है । खड़ी चढ़ाई है और अभी आधी बाकी है । पूरा दम लगा कर आदमी आधी सांस को लेने की कोशिश करता है । बड़ी मुश्किल से तीन चौथाई सांस आ पाती है । अब रास्ता यद्यपि ज्यादा लंबा नहीं है । जब एक सांस में से तीन चौथाई सांस ली जा चुकी है तो फिर 25% सांस में कठिनाई नहीं होनी चाहिए । लेकिन दमखम कहां रह पाता है ? भीतर ही भीतर एक अजीब सी शून्यता है और कुछ समझ में नहीं आता कि अब क्या किया जाए ? चौथाई साँस लेना ऐसा लगता है जैसे हीरे जवाहरात खरीदने पड़ रहे हो और किस्तें चुकाने के लिए भी पैसा नहीं है । बड़ी मुश्किल से पूरी साँस एक झटके में ली जाती है । मगर यहाँ किस्सा खत्म कहां हुआ ?
सांस लेने के बाद उसे छोड़ना पड़ता है । आदमी छोड़ना नहीं चाहता । जो चीज जितनी मुश्किल से मिलती है ,उसका महत्व उतना ही ज्यादा बढ़ जाता है । अब आप जानते हैं कि साँस- सिर्फ एक साँस- पूरे शरीर की ताकत खर्च करके भी कितनी मुश्किल से खींची थी । ऐसे कैसे जाने दें? कोई बैंक में रखी हुई रकम पर ब्याज थोड़े ही मिल रहा है कि कोई बात नहीं ! सांस छोड़ने के मायने हैं बड़ी भारी संघर्षशील कहानी का इतिहास बन जाना । कल्पना करने से ही सिहरन हो रही है कि यह सांस जब छोड़ेंगे तो फिर अगली सांस कैसे ली जाएगी ? लेकिन सांस को छोड़ना तो पड़ता ही है । कितनी देर तक सांस को रोका जा सकता है और फिर साँस धीरे-धीरे छूटने लगती है । ऐसा लगता है जैसे जिंदगी भर की कमाई हाथ से निकल रही है । दुकान ,मकान ,फिक्स डिपाजिट ,जमीने सब कुछ उस एक जाती हुई सांस के साथ जाती हुई नजर आती हैं ।
अब फिर से सांस लेनी पड़ेगी । हे भगवान ! यह किस मुसीबत में डाल दिया ! साँस लेना और छोड़ना ,उसके बाद फिर सांस लेना ,यह हमसे नहीं हो पाएगा । प्रभु ! इस कसरत के चक्कर में मत डालो । वही पहले जैसी आराम से सांस लेने और छोड़ने वाली स्थिति फिर से लाओ । अहा ! क्या दिन थे ! पता भी नहीं चलता था कि कब सांस ली और कब छोड़ दी ? फिर सांस ली, फिर छोड़ दी । दिन भर में कितनी सांसे लीं और कितनी छोड़ दीं- कोई गिनती नहीं । अब एक-एक साँस छोड़ने और लेने की गिनती चल रही है । जो चीज मारी-मारी फिर रही थी ,जिसकी अब तक कोई कद्र नहीं थी ,वह एकाएक अनमोल और दुर्लभ हो गई है । सबसे बड़ी मुसीबत साँस लेने की होती है ,यह बात तब पता चलती है जब साँस लेने पर बन आती है ।
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर( उत्तर प्रदेश )
मोबाइल 999 761 5451