साँवरे
साँवरे सूरति पर बारम्यार ,बलिहारी जाऊँ मैं
चुरा-चुरा माखन खाय ,,देख कर ललचाऊँ मैं
कान्हा प्रीति करो मुझ ,बाबलीं को मन चुरा
अंग -अंग का भेद खत्म ,तू हो बस केवल मैं
मुरली मुझे बनालो प्रभु ,अधरों से लगा लो
लगा अधरों से बजा, सारी गौअन बुला लो
अंग समा लो तिहारी ,मैं राधा जग जाने प्रभु
कान्हा अंग रंग बसू , मुरली कटि से लगा लो
कान्ह मधुर बजाना ,मुरली बैठ नदी के तीर
करूँ मैं सनान गोपियों के संग शीतल समीर
मत ले जा कान्हा मेरे तुम बसन करके हरण
छाया कान्ह तुझसे जा कैसे रह पाऊँ मैं दूर