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22 Feb 2024 · 1 min read

साँची सीख

फूला फलता हो भले बुढ़ापा, कोई ना देखा दुनिया मे सुखी।
ऐसे मद मे रंगा ज़माना, देख के मन मेरा भी दुखी।।

पहले लूटा हमने ही बचपन, बदले में जग ने लूटी जवानी।
तीजी अवस्था अब जो बची है, लूट रही है हथ बेईमानी ।।

जीवन मे जो पाया ज्ञान, कदर नही की बन गया फीका।
दिन ओर रात जगा किस्मत से, जोड़ संजोया शुक्र था रब का।।

विपता रोगो मे तन जर्जर, मन बुद्धि पहले से पतझड़ ।
सांची सीख लगे है कड़वी, बन लोभी झगड़ो की जड़ ।।

शिक्षक बन के घर से निकले, देने को दुखियों को दिलासा ।
आग लगी हो अपने घर में, बाहर बुझेगी क्या है आशा ? ।।

कलयुग के हर घर में ठनी, क्यों रोता मन बनके दुखी ।
राम नाम का घर संतोषी… पाया जिसने बस वही सुखी।।

Language: Hindi
34 Views
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