सहर सुहानी चांदिनी दर पर आई
सहर सुहानी चांदिनी दर पर आई
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सहर सुहानी चांदनी दर पर आई,
गजल पुरानी रागिनी दर पर आई।
कहर हुस्न की साधना है मन डोळे,
महक सुगंधी मोहिनी दर पर आई।
नहर निकलती आँसुओं की देखो,
अबोध भोली रोहिणी दर पर आई।
झुकी हुई है डालियां फुल फूलों से,
सजी सजाई कामिनी दर पर आई।
जहर नशीला घोलती मनसीरत वो,
जबर विषैली नागिनी दर पर आई।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैंथल)