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17 Jun 2021 · 1 min read

सहमी सी है आज कलम….

सहमी-सी है आज कलम
शब्द उदास हैं खोए-खोए
अथाह गमों का सागर है
आखिर कोई कितना रोए !

मानव ही जब मानव की
पीड़ा समझ न पाता है
शब्द अगर मिल भी जाएँ
अर्थ कहीं गुम जाता है
भारी बोझ गमों का इतना
मन है नाजुक, कैसे ढोए !

पल सुख के बस दो-चार
दुखों का है हर सूं अंबार
मरुभूमि से इस जीवन में
दहकते शोले और अंगार
बंजर भाग्य-जमीं पे कोई
बीज आस के कैसे बोए !

अदम्य प्यास है नयनों में
जल-पात्र मगर खाली है
नजरें धुंधली, राह अंधेरी
रात अमा – सी काली है
बिखरे मन के मनके सारे
कौन पास जो उन्हें पिरोए !

आखिर कोई कितना रोए ….

– डॉ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

Language: Hindi
4 Likes · 4 Comments · 337 Views
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